
संघर्ष और सफलता कविता
कश्तियां कहाँ मना करती है
तूफानों से टकराने को
वो मांझी ही डर जाता है
अपने आप को आजमाने को

बदलाव पर कविता – मैं क्यों खुद को बदलूँ
मैं, मैं हूँ
और सदा मैं ही रहूँ !
मैं क्यों खुद को बदलूँ ?
मेरी सोच मेरी है
जानता हूँ, ये खरी है !

ये देश बनता है – सविता पाटिल
ये देश नही बनता केवल खेत-खलिहानों से
पहाड़ो से या मैदानों से
पठारों या रेगिस्तानों से
ये देश बनता है....
यहाँ बसते इंसानों से।