बदलाव पर कविता
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बदलाव पर कविता – मैं क्यों खुद को बदलूँ

मैं, मैं हूँ
और सदा मैं ही रहूँ !

मैं क्यों खुद को बदलूँ ?
मेरी सोच मेरी है
जानता हूँ, ये खरी है !

परिवर्तन पर कविता
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परिवर्तन पर कविता: बदलाव करो निरंतर करो

बदलाव करो, निरंतर करो
पर उसमें कुछ बेहतर करो

बदलाव हो जो जीवन सरल करे
जड़ता को विरल करे

बदलाव अज्ञानता से ज्ञान का
मूढ़ता से विद्यावान का