माँ की तस्वीर नहीं रखताकमरे में मैं – छोटी सी कविता
मां की तस्वीर नहीं रखता
कमरे में मैं
वह बसती है यादों में मेरे
आंखों से बहती सांझ सबेरे
मां की तस्वीर नहीं रखता
कमरे में मैं
वह बसती है यादों में मेरे
आंखों से बहती सांझ सबेरे
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
भूल गया है तू अपना पथ‚
और नहीं पंखों में भी गति‚
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे…
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
नीम की निबोलियाँ उछालती
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये..
नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने
स्वर्ण की पोशाक धारी।
मेरे पीछे इसीलिये तो
धोकर हाथ पड़ी है दुनिया
मैंने किसी नुमाइश घर में
सजने से इंकार कर दिया।
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी
मांग मत, मांग मत, मांग मत
यमुना तट, टीले रेतीले,
घास–फूस का घर डंडे पर,
गोबर से लीपे आँगन मेँ,
तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर
1. घाटी के दिल की धड़कन,
2. काला धन,
3. मै मरते लोकतन्त्र का बयान हूँ,
4. बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे
All the world’s a stage,
And all the men and
women merely players,
They have their exits and entrances,