Motivational Kavita in Hindi

अक्सर हमे जीवन में कुछ बड़ा करने के लिए Motivation की जरुरत होती है, जिससे हमे जीवन जीने की प्रेरणा मिल सके और हम उस लक्ष्य को पा सके जो हम हासिल करना चाहते है Ι यह से आप जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली कविताएँ पढ़ सकते जो आपको काफी ज्यादा प्रभावित करेंगी Ι तो चलिये पढते है Motivational Kavita in Hindi.

Motivational Kavita in Hindi

तू ज़िंदा है तो – शंकर शैलेंद्र

तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर

ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गये हज़ार दिन
कभी तो होगी इस चमन पे भी बहार की नज़र
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर
तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर

सुबह और शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूम कर
तू आ मेरा सिंगार कर तू आ मुझे हसीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर
तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर

हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी, चली गई वो हारकर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर
तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर

हमारे कारवां को मंज़िलों का इंतज़ार है
ये आँधियों, ये बिजलियों की पीठ पर सवार है
तू आ कदम मिला के चल, चलेंगे एक साथ हम
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर
तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर

ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये
मुसीबतों के सर कुचल, चलेंगे एक साथ हम
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर
तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर

बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इंकलाब ये
गिरेंगे ज़ुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर
तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर

तुम मुझको कब तक रोकोगे

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर,
भरकर जेबों में आशाएं ।
दिल में है अरमान यही,
कुछ कर जाएं… कुछ कर जाएं… ।।
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें,
दीपक-सा जलता देखोगे..
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें,
दीपक-सा जलता देखोगे…
अपनी हद रौशन करने से,
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे… ।।
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं
जिसको नदियों ने सींचा है…
बंजर माटी में पलकर मैंने…
मृत्यु से जीवन खींचा है ।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ…
शीशे से कब तक तोड़ोगे..
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ..
शीशे से कब तक तोड़ोगे..
मिटने वाला मैं नाम नहीं…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…।।
इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं,
उतने सहने की ताकत है ….
तानों के भी शोर में रहकर
सच कहने की आदत है ।।
मैं सागर से भी गहरा हूँ…
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे..
मैं सागर से भी गहरा हूँ…
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे..
चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे..।।
झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ,
अब फिर झुकने का शौक नहीं..
अपने ही हाथों रचा स्वयं..
तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं…
तुम हालातों की भट्टी में…
जब-जब भी मुझको झोंकोगे…
तुम हालातों की भट्टी में…
जब-जब भी मुझको झोंकोगे…
तब तपकर सोना बनूंगा मैं…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे…।।
जो बीत गई सो बात गई – हरिवंश राय बच्चन

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया।

अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले

पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है।
जो बीत गई सो बात गई।

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य न्योछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया।

मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली

पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है।
जो बीत गई सो बात गई।

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया।

मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं

पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है।
जो बीत गई सो बात गई।

मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं।

फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं

वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है।
जो बीत गई सो बात गई।

 

समय – सियारामशरण गुप्त

मैं हूँ एक, अनेक शत्रु हैं सम्मुख मेरे,
क्रोध, लोभ, मोहादि सदा रहते हैं घेरे।
परमपिता, इस भाँति कहाँ मुझको ला पटका,
जहाँ प्रतिक्षण बना पराभव का है खटका।

अथवा निर्बल समझ अनुग्रह है दिखलाया,
करने को बलवृद्धि अखाडे में पहुँचाया ।
सबल बनूँ मैं घात और प्रतिघात सहन कर,
ऊपर कुछ चढ सकूँ और दुख भार वहन कर ।

इस कठिन परीक्षा कार्य में,
हो जाऊँ उत्तीर्ण जब,
कर देना मानस सद्म में,
शांति सुगंधि विकीर्ण तब।

अभी नहीं कुछ भी बिगड़ा है – सियारामशरण गुप्त

अभी समय है, अभी नहीं कुछ भी बिगड़ा है,
देखो अभीसुयोग तुम्हारे पास खड़ा है,
करना है जो काम उसी में अपना चित्त लगा दो,
अपने पर विश्वास करो, और संदेह भगा दो ।

पूर्ण तुम्हारा मनोमिष्ट, क्या कभी न होगा?
होगा तो बस अभी, नहीं तो कभी न होगा,
देख रहे हो श्रेष्ट समय के किस सपने को,
छलते हो यो हाय ! स्वयं ही क्यों अपने को ।

तुच्छ कभी तुम न समझो एक पल को भी,
पल – पल से ही बना हुआ जीवन को मानो तुम,
इसके सद्व्यय रूप नीर सिंचन के द्वारा,
हो सकता है सफल जन्मतरु यहाँ तुम्हारा ।

ऐसा सुसमय भला और कब तुम पाओगे,
खोकर पीछे इसे सर्वथा तुम पछताओगे,
तो इसमें वह काम नहीं क्यों तुम कर जाओ,
हो जिसमे परमार्थ तथा तुम भी सुख पाओगे ।

मौत से ठन गई – अटल बिहारी वाजपेयी

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

अब मत मेरा निर्माण करो – हरिवंश राय बच्चन

तुमने न बना मुझको पाया,
युग-युग बीते तुमने मै न घबराया,
भूलो मेरी विह्लता को,
निज लज्जा का तो ध्यान करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,

इस चक्की पर खाते चक्कर,
मेरा तन मन जीवन जर्जर ,
हे कुंभकार मेरी मिटटी को ,
और न अब हैरान करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,

कहने की सीमा होती है,
सहने की सीमा होती है,
कुछ मेरे भी वश में,
कुछ सोच-समझकर,
मेरा भी अपमान करो,
अब मत मेरा निर्माण करो,

इतने ऊँचे उठो – द्वारिका प्रसाद महेश्वरी

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥

नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥

लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिंतन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।

चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों – गोपालदास नीरज

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों,
मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से,
जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालों,
डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से,
सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या

रूठे दिवस मनाने वालों,
फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से,
आँगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती

वस्त्र बदलकर आने वालों,
चाल बदलकर जाने वालों
चँद खिलौनों के खोने से,
बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,
शिकन न आयी पर पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल पहल वो ही है तट पर

तम की उमर बढ़ाने वालों,
लौ की आयु घटाने वालों,
लाख करे पतझड़ कोशिश पर,
उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की
तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,
खिड़की बंद ना हुई धूल की

नफ़रत गले लगाने वालों,
सब पर धूल उड़ाने वालों
कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से,
दर्पण नहीं मरा करता है।

जाग तुझको दूर जाना – महादेवी वर्मा

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!

अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!

बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!

वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया!
सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया?
अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!

कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!

इन्हें भी देखें-

उम्मीद है आपको ये कविताएँ (Motivational Kavita in Hindi) पसंद आई होगी और इनसे आपको प्रेरणा मिली होगी। ऐसी Motivational Poems हमे आत्मविश्वास से भर देती है और जीवन की चुनोतियों से लड़ने में मदद करती है। ऐसी ही जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली कविता आप नीचे विडियो के माध्यम से सुन सकते है।

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