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समर शेष है – रामधारी सिंह दिनकर
ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो
किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो?
किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर से
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?
![दिनकर की देशभक्ति कविता – चूहे की दिल्ली यात्रा](https://kavitapoemdunia.com/wp-content/uploads/2023/08/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%9A%E0%A5%82%E0%A4%B9%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE-768x448.webp)
दिनकर की देशभक्ति कविता – चूहे की दिल्ली यात्रा
चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,
खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!
![रह जाता कोई अर्थ नहीं कविता | रामधारी सिंह दिनकर](https://kavitapoemdunia.com/wp-content/uploads/cwv-webp-images/2024/03/Dinkar-Post-768x432.jpg.webp)
रह जाता कोई अर्थ नहीं कविता | रामधारी सिंह दिनकर
नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अन्तर्मन,
तब सुख के मिले समन्दर का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
![जब विघ्न सामने आते हैं – रामधारी सिंह दिनकर](https://kavitapoemdunia.com/wp-content/uploads/2023/04/%E0%A4%9C%E0%A4%AC-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%98%E0%A5%8D%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-768x448.webp)
जब विघ्न सामने आते हैं – रामधारी सिंह दिनकर
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
![रामधारी सिंह दिनकर कविताएं](https://kavitapoemdunia.com/wp-content/uploads/cwv-webp-images/2024/03/Dinkar-Post-768x432.jpg.webp)
रामधारी सिंह दिनकर कविताएं
1. जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे
2. आग की भीख
3. मनुष्य और सर्प
4. एक विलुप्त कविता
![सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर](https://kavitapoemdunia.com/wp-content/uploads/2023/06/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A8-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A4%BF-%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A5%A4-jpg.webp)
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर
सदियों की ठंढी, बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।