विश्वसुन्दर पदों का कवि था वो, रामधारी सिंह दिनकर, नाम जो ध्यानों में बसा। कविताओं के सागर से लिए वो जल, उन्मुक्त और प्रगट कर गए वो मनोहारी काव्य-फल।
क्रांतिकारी भावों को लेकर उनकी रचनाएं थीं योगदान, जब भारत में बहायी जा रही थी विद्रोह की प्रवाह। स्वतंत्रता संग्राम के बाद लिखे उनके काव्य रत्न, आत्मविश्वास की ज्योति बनकर जगमगाए राष्ट्रीय चेतना के मंडल में।
अग्निपथ, हुंकार, संग्राम, रणधीर, मांगलगाथा, उर्वशी, परशुराम श्राप, उनकी कविताओं ने दिलों में भर दी जोश की अग्नि, अमर रहेंगी वो कविताएं, निर्मल विचारों की प्रभा।
भारतीय संस्कृति, शास्त्र, इतिहास के प्रेमी थे वो, अद्वैत के पंथ के अनुयायी थे वो। समाज के अधीन विचार जिन्होंने प्रगट किये, उनकी वाणी से जगमगाया नवजागरण का सूर्योदय।
वीर रस के प्रमुख व्यक्तिमान थे वो, जिन्होंने दिखाई अपार साहस की गाथा। राष्ट्रीय गौरव के रूप में मचला था उनका नाम, कविता के स्वर्णिम पंखों से दिखाई सबको राष्ट्रीय दर्शन।
रामधारी सिंह दिनकर, वीर रस का रत्न, जीवन भर सत्य की राहों पर चले। उनकी रचनाएं हमेशा याद रहेंगी, भारतीय साहित्य के महानायक के रूप जिन्होंने सम्मान पाए।