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मजदूर कविता रामधारी सिंह दिनकर | Majdoor Par Kavita
मैं मजदूर हूँ मुझे
देवों की बस्ती से क्या!
अगणित बार धरा पर
मैंने स्वर्ग बनाये,
Ramdhari Singh Dinkar Poems – रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं
सामने देश माता का भव्य चरण है
जिह्वा पर जलता हुआ एक बस प्रण है
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे
पीछे परन्तु सीमा से नहीं हटेंगे
समर शेष है – रामधारी सिंह दिनकर
ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो
किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो?
किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर से
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?
Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai | रामधारी सिंह दिनकर
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
कविता का हठ – हुंकार – रामधारी सिंह दिनकर
“बिखरी लट, आँसू छलके, यह सुस्मित मुख क्यों दीन हुआ?
कविते! कह, क्यों सुषमाओं का विश्व आज श्री-हीन हुआ?
संध्या उतर पड़ी उपवन में? दिन-आलोक मलीन हुआ?
किस छाया में छिपी विभा? श्रृंगार किधर उड्डीन हुआ?