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विपत्ति में विरोध में अडिग रहो अटल रहो | Ramdhari Singh Dinkar
विपत्ति में, विरोध में
अडिग रहो, अटल रहो,
विषम समय के चक्र में भी
साहसी प्रबल रहो।
रामधारी सिंह दिनकर कविताएं
1. जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे
2. आग की भीख
3. मनुष्य और सर्प
4. एक विलुप्त कविता
कविता का हठ – हुंकार – रामधारी सिंह दिनकर
“बिखरी लट, आँसू छलके, यह सुस्मित मुख क्यों दीन हुआ?
कविते! कह, क्यों सुषमाओं का विश्व आज श्री-हीन हुआ?
संध्या उतर पड़ी उपवन में? दिन-आलोक मलीन हुआ?
किस छाया में छिपी विभा? श्रृंगार किधर उड्डीन हुआ?
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर
सदियों की ठंढी, बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जब विघ्न सामने आते हैं – रामधारी सिंह दिनकर
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
Krishna Ki Chetavani Poem in Hindi | रामधारी सिंह दिनकर | Rashmirathi
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है