आईना पर कविता: आईना, जो मुझको मेरी रूप-रेखा बताता है

आईना पर कविता

आईना पर कविता

आईना, जो मुझको मेरी रूप-रेखा बताता है,
सच्चाई की रोशनी लेकर मेरा चेहरा छिपाता है।
यह दर्पण, मेरी अंतर्दृष्टि को प्रकट करता है,
मेरे भावों की प्रतिबिंबिति कर, सच्चाई बतलाता है।
आईना, मेरी आत्मा का प्रतिबिंब देता है,
चेहरे की ज़रूरत से बढ़कर, मेरी आंतरिकता जगाता है।
वो दिखलाता है मेरी मनमुग्धता की अभिव्यक्ति,
और समर्पण का पुलिंदा बनकर, खुद को समर्पित कराता है।
आईना, जो मेरे अन्दर की कविता समझता है,
हर भाव को स्पष्ट कर, सत्यता की प्रकाश बिखेरता है।
यह प्रतिबिंबित करता है मेरी दर्पण विचारधारा,
मेरे सपनों की वस्त्र-संपदा को नगीना समझाता है।
आईना, जो खुद को नहीं छिपाता है,
सच्चाई की झलक दिखा कर, मन में विश्वास जगाता है।
यह दिखलाता है मेरी कार्यशैली का असली स्वरूप,
और बुराई को दूर कर, सच्चाई की ओर आकर्षित कराता है।
आईना, जो मुझे मेरी सत्यता से मिलाता है,
मेरी आत्मा की पुकार को सुनकर मुझे जगाता है।
यह सच्चाई के बिना किसी भी रंग में नहीं देखता,
और मेरी अस्तित्व की पुष्टि कर, मुझे समर्पित कराता है।
आईना पर कविता

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