मेहनतकश पर कविता | मजदूर दिवस

मेहनतकश पर कविता | मजदूर दिवस

विधाता ने बनाई दुनिया,
पर बाकी कुछ रखे बचा कर काम
रंगहीन दुनिया में रंग भरने को,
श्रमिक ही हैं दूसरे भगवान

जिन के हाथों में छाले हैं,
जिनके पैरों में है बिमाइयों के निशान
उन्ही के दम पर चमकीले हैं,
हमारे शहर, हमारे मकान

इन्हीं श्रमिकों के श्रम को सम्मान दिलाने,
प्रयासरत है सारा जहान
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस को,
अमेरिका से मिली प्रथम पहचान

8 घंटे से ज्यादा मजदूरी पर,
प्रतिबंधों को दिया गया अंजाम
रशिया, चीन के साम्यवाद ने,
श्रमिकों का बढ़ाया मान सम्मान

1923 से भारत ने भी,
श्रमिक कल्याण के चलाए अभियान
अंबेडकर से गांधीजी तक,
सबका था यहीं पेगाम

देश की तरक्की जिन पर निर्भर,
आगे बढ़ें वे मजदूर, किसान
सर्वाधिक पीड़ित है दोनों ही,
हर स्तर पर होता अपमान

कुछ रुपयों की मजदूरी से हम,
खरीदते उनकी सुबह, दोपहर और सुंदर शाम
दो वक्त की रोटी ही है,
हर मजदूर का बड़ा अरमान

वह भी हम दे न सकें तो,
यह धरती है नर्क समान
मालिकों के चर्बीले कुत्तों से भी कम,
निर्बल श्रमिक में होती जान

दो दिन की बीमारी ही,
ला देती जीवन में उनके तूफान
शिक्षित भी हो, स्वस्थ भी हो,
जीवन इतना इनका नहीं आसान

पर हमारे वर्ग भेद के बाद भी,
ईश्वर ज्यादा इन पर मेहरबान
गहरी नींद सोते चटाई पर,
नींद की गोलियों से होते अनजान

छक कर खाते हैं रूखा सूखा,
उनको ईश्वर का यह अनुपम वरदान
सैकड़ों चल रही योजनाऐं सरकारी,
संभव हो जिनसे श्रमिक कल्याण

पर लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में दबकर,
चढ़ती नहीं पूरी परवान
यद्यपि प्रयासरत है भारतीय मजदूर संघ,
और कुछ विशिष्ठ इंजीनियरिंग संस्थान

शिक्षा और स्वास्थ्य भी हम दे सकें सही से,
तो कुछ चुके उनका एहसान
इस मई दिवस पर ले संकल्प,
श्रमिकों को भी माने हम इंसान समान

उद्देश्य यही है कविता लिखने का,
श्रमिकों को श्रम का मिले सम्मान
आप सभी को श्रमिक दिवस की,
बहुत-बहुत शुभकामनाएं श्रीमान

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