Hindi Diwas par Kavita – हिंदी ही हो हमारे स्वाभिमान की भाषा

Hindi Diwas par Kavita

Hindi Diwas par Kavita

संस्कृत जननी है विश्व भाषाओं की, मानता है सारा संसार
हमारी क्षेत्रीय भाषाओं का भी, संस्कृत ही है मूल आधार
देववाणी रही संस्कृत, तपस्वियों ने संस्कृत में ही व्यक्त किए उदगार
पाली, ब्राह्मी, अवधि, खड़ी बोली से परिष्कृत, हिंदी ने फिर पाया आकार
बड़ी बेटी है हिंदी संस्कृत की, उम्र है लगभग वर्ष हजार
12 वीं सदी तक संस्कृत थी राजभाषा, फिर हिंदी ने उठाया भार
पर फारसी और अंग्रेजी की राजशाही ने, बीच-बीच में रोका विस्तार
पर अब हम स्वतंत्र हैं, सक्षम हैं, पीछे रह गई घोर निराशा
क्यों ना अब हिंदी ही हो हमारे स्वाभिमान की भाषा
 
 
गाय का दूध अच्छा है, स्वास्थ्यवर्धक है, पर हो नहीं सकता मां के दूध समान
वैसे ही अंग्रेजी समृद्ध कितनी हो, पर मातृभाषा का कैसे हम दे सम्मान
अंग्रेजी सिखाती जीवन यापन, मस्तिष्क के एक भाग पर ही करती है काम
हिंदी से विकास दोनों मस्तिष्क का, बताता है राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान संस्थान
जैसे भाव वैसे ही शब्द हिंदी में, वस्तु एक, पर अनेक नाम
कहीं शब्द एक, पर भाव अनेक, बोलकर देखें हम यदि राम
कंप्यूटर के लिए भी श्रेष्ठ है देवनागरी, पर रोमन ने कब्जा रखा स्थान
यद्यपि रिजर्व बैंक ने ईमेल शुरू कर देव नागरी में, आगे का काम किया आसान
पर क्षेत्रवाद और भाषाई विभाजनों ने, मिलने नहीं दिया उचित सम्मान
दुनिया की चौथी बड़ी भाषा होने पर भी, यूएनओ में नहीं मिला स्थान
उधर छोटे से इजरायल में हिब्रू के दम पर, 16 नोबेल पा चुके वहां के विद्वान
सर्व समर्थ, सर्वथा सक्षम, पूर्ण परिष्कृत होने पर भी, मिलती नहीं कहीं कोई दिलासा
कैसे अब हिंदी ही हो हमारे स्वाभिमान की भाषा
 
Hindi Diwas par Kavita
प्रथम विश्व युद्ध के ठीक बाद ही, तुर्की ने पाया तुर्किओं का राज
प्रथम शासक मुस्तफा कमाल पाशा ने, शासन का जब किया आगाज
अंग्रेजी, अरबी का वर्चस्व देश पर था, तुर्की का अस्त था भाषाई साम्राज्य
पूछा अधिकारियों से कमाल ने, कब तक चलाओगे अपनी भाषा में कामकाज
10 वर्ष का समय बताया अधिकारियों ने, कमाल ने दिखाया सख्त एतराज
बोले- 10 वर्ष खत्म हो गए अभी समझो, सारी व्यवस्था बदले आज
आखिर तुर्की पुनः स्थापित हुई, अंग्रेजी, अरबी का, बचा नहीं नाम जरा सा
पर दुर्भाग्य से हमारे यहां अब तक, जन्मा नहीं कोई मुस्तफा कमाल पाशा
क्यों ना अब हिंदी ही हो हमारे स्वाभिमान की भाषा
 
 
अंत में बात करें उन हस्तियों की, हिंदी दिवस पर जिन को करना है नमन
सूर, कबीर, तुलसी, नानक, मीरा, यह थे कुछ नाम प्रथम
मराठा, राजपूतों और बहमनी शासकों ने भी, अपने स्तर पर किया उन्नयन
अकबर के नवरत्न खानखाना ने, होने नहीं दिया हिंदी हनन
1857 के स्वतंत्रता संग्राम ने, संपर्क रूप में बढ़ाया प्रचलन
आर्य समाज ने सत्यार्थ प्रकाश का, हिंदी में ही किया प्रकाशन
भूषण, भारतेंदु से महादेवी निराला तक ने, हिंदी वर्धन के किए जतन
गांधी जी के आगमन के बाद तो, हिंदी में ही लड़ा गया स्वतंत्रता आंदोलन
स्वतंत्रता के बाद “गांधी अंग्रेजी भूल गया” गांधी का था प्रतीक वचन
और भी है नाम सहस्त्रों, जिनने हिंदी की गड़ी सुंदर परिभाषा
अब हिंदी ही हो हमारे स्वाभिमान की भाषा, सम्मान की भाषा
Hindi Diwas par Kavita

Similar Posts