मां की तस्वीर नहीं रखता कमरे में मैं – छोटी सी कविता
मां की तस्वीर नहीं रखता
कमरे में मैं
वह बसती है यादों में मेरे
आंखों से बहती सांझ सबेरे
मां की तस्वीर नहीं रखता
कमरे में मैं
वह बसती है यादों में मेरे
आंखों से बहती सांझ सबेरे
अगर कभी मैं रूठ गया तो,
माँ ने बहुत स्नेह से सींचा।
कितनी बड़ी शरारत पर भी,
जिसने कान कभी ना खीँचा।
घुटनो से रेंगते रेंगते
कब पैरो पर खड़ा हुआ
तेरी ममता की छाव में
ना जाने कब बड़ा हुआ
आज मेरा फिर से
मुस्कुराने का मन किया,
माँ की ऊँगली पकड़कर
घूमने जाने का मन किया।
हिसाब लगा के देख लो
दुनिया के हर रिश्ते में कुछ अधूरा आधा निकलेगा
एक मां का प्यार है
जो दूसरों से 9 महीने से ज्यादा निकलेगा।