Tag: रामधारी सिंह दिनकर

दिनकर की देशभक्ति कविता- चूहे की दिल्ली यात्रा

दिनकर की देशभक्ति कविता – चूहे की दिल्ली यात्रा

चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो, लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो। मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना, खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!
Ramdhari singh dinkar ki kavita

Ramdhari singh dinkar ki kavita – जियो जियो अय हिन्दुस्तान

जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल।
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

रामधारी सिंह दिनकर पर कविता: विश्वसुन्दर पदों का कवि

विश्वसुन्दर पदों का कवी था वो, रामधारी सिंह दिनकर, नाम जो ध्यानों में बसा। कविताओं के सागर से लिए वो जल, उन्मुक्त और प्रगट कर गए वो मनोहारी काव्य-फल।
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर

सदियों की ठंढी, बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
रह जाता कोई अर्थ नहीं कविता

रह जाता कोई अर्थ नहीं कविता – रामधारी सिंह दिनकर

नित जीवन के संघर्षों से जब टूट चुका हो अन्तर्मन, तब सुख के मिले समन्दर का रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
कृष्ण की चेतावनी कविता

कृष्ण की चेतावनी कविता – रामधारी सिंह दिनकर

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है
समर शेष है

समर शेष है – रामधारी सिंह दिनकर

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो? किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर से भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?
रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह

रामधारी सिंह दिनकर की कविता संग्रह

-हमारे कृषक, -शक्ति और क्षमा, -सुन्दरता और काल, -भारत, -कृष्ण की चेतावनी, -किसको नमन करूँ मैं भारत?, -कोयल
मजदूर कविता रामधारी सिंह दिनकर

मजदूर कविता रामधारी सिंह दिनकर

मैं मजदूर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या! अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये, अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से, मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा;
अर्धनारीश्वर - Rashtrakavi Dinkar

अर्धनारीश्वर – रामधारी सिंह दिनकर – Rashtrakavi Dinkar

एक हाथ में डमरू, एक में वीणा मधुर उदार, एक नयन में गरल, एक में संजीवन की धार। जटाजूट में लहर पुण्य की शीतलता-सुख-कारी, बालचंद्र दीपित त्रिपुंड पर बलिहारी! बलिहारी!