हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी

हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी | मैथिलीशरण गुप्त

म कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां

ब्राह्मण - मैथिलीशरण गुप्त 
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ब्राह्मण – मैथिलीशरण गुप्त | हे ब्राह्मणों फिर पूर्वजों के तुल्य तुम

हे ब्राह्मणो! फिर पूर्वजों के तुल्य तुम ज्ञानी बनो,
भूलो न अनुपम आत्म-गौरव, धर्म के ध्यानी बनो।
कर दो चकित फिर विश्व को अपने पवित्र प्रकाश से,

क्षत्रिय - मैथिलीशरण गुप्त
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क्षत्रिय – मैथिलीशरण गुप्त | हे क्षत्रियो! सोचो तनिक, तुम आज कैसे

हे क्षत्रियो! सोचो तनिक, तुम आज कैसे हो रहे;
हम क्या कहें, कह दो तुम्हीं, तुम आज जैसे हो रहे।
स्वाधीनता सारी तुम्हीं ने है न खोई देश की?

वैश्य - मैथिलीशरण गुप्त
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वैश्य – मैथिलीशरण गुप्त | वैश्यो! सुना, व्यापार सारा मिट चुका

वैश्यो! सुना, व्यापार सारा मिट चुका है देश का,
सब धन विदेशी हर रहे हैं, पार है क्या क्लेश का?
अब भी न यदि कर्तव्य का पालन करोगे तुम यहाँ-

शूद्र - मैथिलीशरण गुप्त
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शूद्र – मैथिलीशरण गुप्त | शूद्रो! उठो, तुम भी कि भारत-भूमि डूबी

शूद्रो! उठो, तुम भी कि भारत-भूमि डूबी जा रही,
है योगियों को भी अगम जो व्रत तुम्हारा है वही।
जो मातृ-सेवक हो वही सुत श्रेष्ठ जाता है गिना,

नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को | Maithili Sharan Gupt

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो