अब जागो जीवन के प्रभात | जयशंकर प्रसाद
अब जागो जीवन के प्रभात
वसुधा पर ओस बने बिखरे
हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे
उषा बटोरती अरुण गात !
अब जागो जीवन के प्रभात !
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तम नयनों की ताराएँ सब-
मुद रही किरण दल में हैं अब,
चल रहा सुखद यह मलय वात !
अब जागो जीवन के प्रभात !
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अब जागो जीवन के प्रभात !
रजनी की लाज समेटो तो,
कलरव से उठ कर भेंटो तो ,
अरुणाचल में चल रही बात,
अब जागो जीवन के प्रभात !
ये भी देखें :
- रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता
- मैथिलीशरण गुप्त जी की कविता
- हरिवंश राय बच्चन जी की कविता
- सुमित्रानंदन पन्त की कविता