परिश्रम पर आलस्य भारी
कामचोरी का संसार देख,
आँखे भी हैरान है,
परिश्रम की बात से भागते,
क्यों लोग विकास से अंजान है।
दुनिया बेजान अनदेखी,
धृष्टता के पाठ पढ़ाती,
आज आलस्य की बाजी,
कितने अरमानों को जलाती।
सपने बुने बैठे हैं,
बिना परिश्रम के सफलता चाहते,
बहानों के झूले में,
ख्वाब केवल सजे रह जाते।
चाहने से कुछ नहीं मिलता,
करना होगा कठिन परिश्रम,
जीवन में सफलता के रास्ते में,
भरे हैं दुखों के घने वन।
कामचोरी की भूमि में,
नहीं उगेंगे खुशियों के फूल,
बिना मेहनत के जीती सफलता,
होती है आँखों की धूल।
जागो तब तक जागो,
जब तक न मिले सफलता का सार,
कठिनाईयों को गले लगाकर ही,
पाएँगे हम विजयी अपार।
आओ छोड़ें आलस्य को,
थामे परिश्रम की डोर,
सपनों को दे पंख,
ऊँचाइयों को छू जाएं और।
जीवन का अर्थ समझें,
आलस्य से हों जाएं परे,
परिश्रम का मीठा फल चखें,
सुख-शांति से जीवन भरे।


One thought on “Hindi Kavita: परिश्रम पर आलस्य भारी”