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गर्मी पर कविता
धूप की छांव में बदल जाता हैं मौसम,
गर्मी की आग में जलता ये तन मन।
तपते हैं धरती के अंग शीतलता के लिए,
पानी की तलाश में भटकते हैं लोग यहां।
धरती तरसती हैं वर्षा की बूँदों को,
आँधी बनकर आती हैं गर्मी की लू।
आग के बिना रह नहीं पाता यह संसार,
पर गर्मी आईं हैं, सब बहुत चिढ़ रहे हैं।
धूप में चलने की हो गई हैं आदत,
छाता और ठंडी चीज़ों का बहुत ख्याल।
जल्दी-जल्दी भरते हैं मटकी और मशक,
बर्फ की सीढ़ी चढ़कर मिलती हैं ठंडी राहत।
दिन और रात लगते हैं समान,
गर्मी की लहर में उड़ते हैं सब तारे।
सरसराती हवा में उड़ता हैं सुख,
जलते हुए सूरज के नीचे लेते हैं साँसे।
जब गर्मी छूटेगी, आएगी बरसात,
सब रहेंगे आहत इस गर्मी से।
पर जब धरती को चाहिए होगी शीतलता,
फिर सब याद करेंगे गर्मी की खट्टी मिठास।
गर्मी पर कविता