हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए – दुष्यन्त कुमारBy Kavita Dunia | September 28, 2021 हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिएहो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिएइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिएआज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिएहर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव मेंहाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिएसिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिएमेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सहीहो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।बदलाव करो निरंतर करो – सविता पाटिल
एक आशीर्वाद – दुष्यंत कुमार की कविताBy Kavita Duniaजा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी…
मापदण्ड बदलो – दुष्यन्त कुमारBy Kavita Duniaमेरी प्रगति या अगति का यह मापदण्ड बदलो तुम, जुए के पत्ते सा मैं अभी अनिश्चित हूँ । मुझ…
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