विपत्ति में विरोध में अडिग रहो अटल रहो – Ramdhari Singh Dinkar

विपत्ति में, विरोध में
अडिग रहो, अटल रहो,
विषम समय के चक्र में भी
साहसी प्रबल रहो।

परिचय – रामधारी सिंह दिनकर | Dinkar Ki Kavita

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं

मंजिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह दिनकर

वह प्रदीप जो दीख रहा है
झिलमिल, दूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई!
मंजिल दूर नहीं है।

कविता का हठ – हुंकार – रामधारी सिंह दिनकर

“बिखरी लट, आँसू छलके, यह सुस्मित मुख क्यों दीन हुआ?
कविते! कह, क्यों सुषमाओं का विश्व आज श्री-हीन हुआ?
संध्या उतर पड़ी उपवन में? दिन-आलोक मलीन हुआ?
किस छाया में छिपी विभा? श्रृंगार किधर उड्डीन हुआ?

दिनकर की देशभक्ति कविता – चूहे की दिल्ली यात्रा

चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,
खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!

रामधारी सिंह दिनकर पर कविता: विश्वसुन्दर पदों का कवि

विश्वसुन्दर पदों का कवी था वो,
रामधारी सिंह दिनकर, नाम जो ध्यानों में बसा।
कविताओं के सागर से लिए वो जल,
उन्मुक्त और प्रगट कर गए वो मनोहारी काव्य-फल।

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