कच्ची सड़क – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
नीम की निबोलियाँ उछालती
सुनो ! सुनो !
यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी
जो मेरे गाँव को जाती थी।
नीम की निबोलियाँ उछालती
अगर कहीं मैं घोड़ा होता
वह भी लंबा चौड़ा होता
तुम्हें पीठ पर बैठा कर के
बहुत तेज मैं दौड़ा होता
चाँदनी की पाँच परतें,
हर परत अज्ञात है।
एक जल में
एक थल में,
एक नीलाकाश में।
एक आँखों में तुम्हारे झिलमिलाती,
एक मेरे बन रहे विश्वास में।
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा
देखो मैने कंधे चौडे कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एडियाँ जमाकर
खडा होना मैने सीख लिया है
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