इंकार कर दिया – रामावतार त्यागी की कविता
मेरे पीछे इसीलिये तो
धोकर हाथ पड़ी है दुनिया
मैंने किसी नुमाइश घर में
सजने से इंकार कर दिया।
मेरे पीछे इसीलिये तो
धोकर हाथ पड़ी है दुनिया
मैंने किसी नुमाइश घर में
सजने से इंकार कर दिया।
आँचल बुनते रह जाओगे,
ज़िंदगी और बता तेरा इरादा क्या है,
आदमी का आकाश,
ज़िंदगी एक रस, तन बचाने चले थे
एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है