हारना तब आवश्यक हो जाता है
हारना तब आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई “अपनों” से हो।
और जीतना तक आवश्यक हो जाता है,
जब लड़ाई अपने आप से हो।
मंजिल मिले यह तो मुकद्दर की बात है,
हम कोशिश भी ना करें यह तो गलत बात है।
किसी ने बर्फ से पूछा,
इतने ठंडे क्यों हो?
बर्फ ने बड़ा अच्छा जवाब दिया:
मेरा अतीत भी पानी,
और मेरा भविष्य भी पानी
फिर गर्मी किस बात पर रखूं।
गिरना भी अच्छा है दोस्तों,
औकात का पता चलता हैं।
बढ़ते है जब हाथ उठाने को,
अपनों का पता चलता है।
सीख रहा हूँ अब मैं भी,
इंसानो को पढ़ने का हुनर।
सुना है, चेहरे पे
किताबों से ज्यादा लिखा होता है।
ये सुने-
रब ने नबाजा हमें ज़िन्दगी देकर,
और हम शौहरत मांगते रह गए।
ज़िन्दगी गुजार दी शौहरत के पीछे
फिर मौहलत मांगते रह गए।
ये कफ़न, ये जनाजे, ये कब्र
सिर्फ बाते है मेरे दोस्त।
वर्ना मर तो इंसान तभी जाता है,
जब याद करने वाला कोई न हो।
यह समन्दर भी
तेरी तरह खुदगर्ज निकला।
ज़िंदा थे तो तैरने न दिया,
मर गए तो डूबने न दिया।
क्या बात करे इस दुनिया की,
हर शख्स के अपने अफ़साने है।
जो सामने है उसे लोग बुरा कहते है;
और जिसे कभी देखा ही नहीं उसे सब खुदा कहते है।
आज मुलाक़ात हुई जाती हुई उम्र से
मैंने कहा ज़रा ठेहरो तो,
वह हँसकर इठलाते हुई बोली,
मैं उम्र हूँ ठहरती नहीं ;
पाना चाहते हो मुझ को तो,
मेरे हर कदम के संग चलो।
मैंने भी मुस्कुराते हुए कह दिया-
कैसे चलूँ मैं बनकर तेरा हम कदम,
तेरे संग चलने पर मुझे छोड़ना होगा
मेरा बचपन, मेरी नादानी, मेरा लड़कपन।
तू ही बता दे कैसे
समझदारी की दुनिया अपना लूँ,
जहाँ है नफरते, दूरियां,
शिकायतें और अकेलापन।
मैं तो दुनिया ऐ चमन में
बस एक मुसाफिर हूँ,
गुजरते वक़्त के साथ एक दिन
यु ही गुज़र जाऊंगा,
करके कुछ आँखों को नम,
कुछ दिलो में यादे बनकर बस जाऊंगा।
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