काले बादल कविता: पृथ्वी को सुखी धरा चिढ़ा रहे हैं
काले बादल आसमान में,
गहरी सियाही बिखरा रहे हैं।
वर्षा की आहट सुनाई दे रही,
पृथ्वी को सुखी धरा चिढ़ा रहे हैं।
काले बादल आसमान में,
गहरी सियाही बिखरा रहे हैं।
वर्षा की आहट सुनाई दे रही,
पृथ्वी को सुखी धरा चिढ़ा रहे हैं।
बादल गमों का साथी हैं जीवन के,
हर अँधेरे में उम्मीद का पहरा लेकर।
जैसे उनके गुजरने से आती हैं बहार,
हमारे जीवन में खुशियों की बौछार लेकर।