पत्थर पर कविता: मैं अमर हूँ, तुम समझ जाओगे
पत्थर हूँ मैं, कठोर हूँ मैं,
अपनी मजबूती में छिपा हूँ मैं।
मेरी कठिनाईयों को तुम समझ न पाओगे,
हर संघर्ष में बचपन से खड़ा हूँ मैं।
पत्थर हूँ मैं, कठोर हूँ मैं,
अपनी मजबूती में छिपा हूँ मैं।
मेरी कठिनाईयों को तुम समझ न पाओगे,
हर संघर्ष में बचपन से खड़ा हूँ मैं।