सूर्य ढलता ही नहीं है – रामदरश मिश्र | Suraj par Kavita

सूर्य ढलता ही नहीं है – रामदरश मिश्र | Suraj par Kavita

सूर्य ढलता ही नहीं है – रामदरश मिश्र | Suraj Par Kavita चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं हैदोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है! आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों सेबंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों सेहैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तरचिड़चिड़ाकर कह रहे-…