मैं घास हूँ – अवतार सिंह संधू पाश
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर, बना दो होस्टल को मलबे का ढेर, सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर … मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर, बना दो होस्टल को मलबे का ढेर, सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर … मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा
श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है