
मैं घास हूँ – अवतार सिंह संधू पाश
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर, बना दो होस्टल को मलबे का ढेर, सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर ... मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा

सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना – पाश
श्रम की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-सोए पकड़े जाना – बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है