देववाणी में थी रामायण,
समझना जरा था मुश्किल काम
अकबर का दीन ए इलाही हिंदुत्व को, दे रहा था बड़ा नुकसान
धर्म निरपेक्षता की कृत्रिम छबि से, धोखा खा रही थी हिन्दू अवाम
अल्लाह हो अकबर की अनिवार्यता से, परेशान थे चिंतक और बुद्धिमान
अनपढ़ अकबर की कुटिल बुद्धिमत्ता से, सत्ता फेला रही थी इस्लाम
समाज की एकता जरूरी थी, जरूरी था बचाना आत्म सम्मान
ऐसे में रामचरित्र लिखकर अवधि में, राम से बढ़ा दिया राम का नाम
राम के चरित्र, सीता के सतीत्व ने, रिक्तता पर लगाया पूर्ण विराम
पूरी कविता पड़ने के लिए नीचे लिंक पर जाए
एक अकेले तुलसीदास
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