हिंदी कविता:  विवेकानंद पर कलम चलाएं

30 वर्ष की अल्पायु में ही, हुए परमहंस के उत्तराधिकारी नवजागरण के व्याख्यानों पर, जुड़ने लगी भीड़ भारी 

धर्म संसद होनी थी शिकागो में, दुनिया कर रही थी तैयारी गुलाम था भारत अब तक, संभव नहीं थी भागीदारी 

खेतड़ी महाराज ने खर्च उठाया, भेजने की ली जिम्मेदारी समय मिला दो मिनट बमुश्किल, विषय मिला शून्य उपहास कारी 

बहनों भाइयों के प्रथम संबोधन से ही, तालियों की गूंजी किलकारी चौबीस घंटे अनवरत बोले, समय भूल गए अमेरिकी नर नारी 

कहा जैसे नदी मिलती समुद्र से, कई कई रास्तों की करके सवारी सभी धर्म पहुंचाते ईश्वर तक, पद्धति पृथक पर नियति एक हमारी 

किंतु सनातन धर्म की श्रेष्ठता को, प्रमाणिकता से बताया मंगलकारी दुनिया ने माना लोहा भारत का, 18 ही दिन अंतिम वक्ता की रही जवाबदारी 

चीन, जापान से यूरोप के कई देशों तक, धर्म पताका फहरा कर आए आओ सूरज को दिया दिखाएं, विवेकानंद पर कलम चलाएं 

उठो, जागो और रुको मत, सदी का रहा यह महान विचार युवाओं के लिए प्रेरणा था यह नारा, आज भी सर्वाधिक प्रेरणास्पद उदगार 

100 युवा सन्यासियों की चाह रखी समाज से, समाज का कर सके जो जीर्णोद्धार दीन दुखियों को ही ईश्वर माना, कुरीतियों पर सदा किया प्रहार 

महिला शिक्षा के रहे हिमायती, पर युवाओं के लिए तो ईश्वर अवतार आज के युवा सीखें उनसे, जो डॉलर की खातिर छोड़ देते हैं घर-परिवार 

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