सुभाष चंद्र बोस पर कविता

वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं। वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन, न रवानी है! जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सही खून की कीमत पहचानी थी। जिस दिन सुभाष ने बर्मा में मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, “स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हें करना होगा। तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी। वह सुनो, तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं पैसे पर खेला जाता है? यह शीश कटाने का सौदा नंगे सर झेला जाता है”

यूँ कहते-कहते वक्ता की आंखों में खून उतर आया! मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया!

यूँ कहते-कहते वक्ता की आंखों में खून उतर आया! मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले, “रक्त मुझे देना। इसके बदले भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना।

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