पाप बहुत है हरो मुरारी – कृष्ण जन्माष्टमी कविता
पाप बहुत है हरो मुरारीसतयुग, द्वापर, त्रेता बीता, चल रहा है कलयुग का कालशुरुआत ही है कलिकाल की, चलना और हजारों सालघर-घर कंश है दर-दर दुर्योधन, एक नही पर गिरधर गोपालदया, धर्म और…
पाप बहुत है हरो मुरारीसतयुग, द्वापर, त्रेता बीता, चल रहा है कलयुग का कालशुरुआत ही है कलिकाल की, चलना और हजारों सालघर-घर कंश है दर-दर दुर्योधन, एक नही पर गिरधर गोपालदया, धर्म और…