विपत्ति में विरोध में अडिग रहो अटल रहो | Ramdhari Singh Dinkar
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विपत्ति में विरोध में अडिग रहो अटल रहो | Ramdhari Singh Dinkar

विपत्ति में, विरोध में
अडिग रहो, अटल रहो,
विषम समय के चक्र में भी
साहसी प्रबल रहो।

परिचय – रामधारी सिंह दिनकर | Dinkar Ki Kavita

परिचय – रामधारी सिंह दिनकर | Dinkar Ki Kavita

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं

थककर बैठ गये क्या भाई… मंजिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह दिनकर
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थककर बैठ गये क्या भाई… मंजिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह दिनकर

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
चिनगारी बन गई लहू की बूँद गिरी जो पग से;
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण – चिह्न जगमग – से।

रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएं

रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएं

रामधारी सिंह दिनकर का योगदान हिन्दी साहित्य में अद्वितीय है, और उनकी कविताएं आज भी याद की जाती हैं, जो भारतीय समाज के लिए एक आदर्श और प्रेरणास्रोत की भूमिका निभाती हैं।

मिथिला – रामधारी सिंह दिनकर

मिथिला – रामधारी सिंह दिनकर

मैं पतझड़ की कोयल उदास,
बिखरे वैभव की रानी हूँ
मैं हरी-भरी हिम-शैल-तटी
की विस्मृत स्वप्न-कहानी हूँ।

कविता का हठ – हुंकार – रामधारी सिंह दिनकर

कविता का हठ – हुंकार – रामधारी सिंह दिनकर

“बिखरी लट, आँसू छलके, यह सुस्मित मुख क्यों दीन हुआ?
कविते! कह, क्यों सुषमाओं का विश्व आज श्री-हीन हुआ?
संध्या उतर पड़ी उपवन में? दिन-आलोक मलीन हुआ?
किस छाया में छिपी विभा? श्रृंगार किधर उड्डीन हुआ?

दिनकर की देशभक्ति कविता – चूहे की दिल्ली यात्रा
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दिनकर की देशभक्ति कविता – चूहे की दिल्ली यात्रा

चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,
खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!

Ramdhari Singh Dinkar Ki Kavita | जियो जियो अय हिन्दुस्तान

Ramdhari Singh Dinkar Ki Kavita | जियो जियो अय हिन्दुस्तान

जाग रहे हम वीर जवान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
हम प्रभात की नई किरण हैं,
हम दिन के आलोक नवल,

रामधारी सिंह दिनकर पर कविता: विश्वसुन्दर पदों का कवि

रामधारी सिंह दिनकर पर कविता: विश्वसुन्दर पदों का कवि

विश्वसुन्दर पदों का कवी था वो,
रामधारी सिंह दिनकर, नाम जो ध्यानों में बसा।
कविताओं के सागर से लिए वो जल,
उन्मुक्त और प्रगट कर गए वो मनोहारी काव्य-फल।

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर

सदियों की ठंढी, बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।