
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार – शिवमंगल सिंह सुमन
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार

बहुत दिनों के बाद – हरिओम पंवार | Hariom Pawar ki Kavita
बहुत दिनों के बाद छिड़ी है वीणा की झंकार अभय
बहुत दिनों के बाद समय ने गाया मेघ मल्हार अभय
बहुत दिनों के बाद किया है शब्दों ने श्रृंगार अभय
बहुत दिनों के बाद लगा है वाणी का दरबार अभय

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए – दुष्यन्त कुमार
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

तू भी है राणा का वंशज – वाहिद अली वाहिद
कब तक बोझ संभाला जाए
द्वंद्व कहां तक पाला जाए
दूध छीन बच्चों के मुख से
क्यों नागों को पाला जाए
दोनों ओर लिखा हो भारत
सिक्का वही उछाला जाए

Baith jata hu mitti pe aksar – हरिवंश राय बच्चन
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर,
क्यूंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।

Kadam Milakar Chalna Hoga – अटल बिहारी वाजपेयी
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।

एक भी आँसू न कर बेकार – रामावतार त्यागी
एक भी आँसू न कर बेकार – जाने कब समंदर...

सरस्वती वंदना कविता – फिर चमके हिंदुस्तान रे
सोच हमारी बिगड़ गई माते, बिगड़े बोल जुबां पर आए
केकई, द्रौपदी की जिव्हा पर आ मां तूने, बड़े-बड़े कई युद्ध कराए
पर अब उतर तू कृष्ण सी जिव्हा पर, एक और ज्ञान गीता जग चाहे
वेदव्यास सी बुद्धि दे माता, विवेकानंद सा ज्ञान रे

Kalam aaj unki jai bol – रामधारी सिंह दिनकर
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

होली पर प्रेरणादायक कविता – हरिवंश राय बच्चन
यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,