भिक्षुक – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”| bhikshuk kavita भिक्षुक वह आता-- दो टूक कलेजे को करता, पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को Jul 5, 2023Jul 28, 2023सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"