
मेहनतकश पर कविता – श्रमिक दिवस
विधाता ने बनाई दुनिया, पर बाकी कुछ रखे बचा कर काम
रंगहीन दुनिया में रंग भरने को, श्रमिक ही हैं दूसरे भगवान
जिन के हाथों में छाले हैं, जिनके पैरों में है बिमाइयों के निशान
उन्ही के दम पर चमकीले हैं, हमारे शहर, हमारे मकान