Category: दुष्यन्त कुमार

मापदण्ड बदलो

मापदण्ड बदलो – दुष्यन्त कुमार

मेरी प्रगति या अगति का यह मापदण्ड बदलो तुम, जुए के पत्ते सा मैं अभी अनिश्चित हूँ । मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं, कोपलें उग रही हैं, पत्तियाँ झड़ रही हैं,

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए – दुष्यन्त कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए, आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए